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एसाइटिस क्या है? लक्षण, कारण, और इलाज - Ascites in Hindi

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Dr. Aman Priya Khanna
Ascites Meaning In Hindi

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Ascites Meaning In Hindi
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अक्सर लोग जानना चाहते हैं कि एसाइटिस का हिंदी में क्या अर्थ होता है? (Ascites meaning in hindi)। इस लेख के माध्यम से जानते है कि एसाइटिस आखिरकार होता क्या है? और उसका हिन्दी में क्या अर्थ होता है? एसाइटिस को हिन्दी में जलोदर कहते हैं। जलोदर की अवस्था में मरीज के पेट में बहुत अधिक तरल पदार्थ जमा हो जाता है।

अब सभी लोग, ये जानने के लिए उत्सुक होंगे कि एसाइटिस या जलोदर होने की वजह से क्या हो सकता है, इसका अर्थ क्या है? , तो इस जानकारी के लिए यह लेख ध्यान से पढ़ें। इसके अलावा आगे जानिए कि एसाइटिस या जलोदर होने के लक्षण, प्रकार, कारण, निदान, रोकथाम, दवा, उपचार और अन्य महत्वपूर्ण विवरण। 

रोग का नाम     एसाइटिस (जलोदर)
लक्षण अचानक वजन बढ़ना, बड़ा सूजा हुआ पेट
कारण लिवर सिरोसिस, हार्ट फेलियर, किडनी रोग, कैंसर
निदान लिवर फंक्शन टेस्ट, पैरासेन्टेसिस, एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड
इलाज कौन करता है गैस्ट्रोलॉजिस्ट
उपचार के विकल्प पैरासेन्टेसिस, ट्रांसजगुलर इंट्राहेपेटिक पोर्टोसिस्टमिक शंट (टिप्स), लीवर ट्रांसप्लांट

एसाइटिस क्या है?

एसाइटिस या जलोदर पेट में, विशेष रूप से उदर गुहा में अतिरिक्त द्रव के निर्माण के बाद उसके जमा होने को संदर्भित करता है। तो अब जानते हैं कि पेट में कहाँ यह तरल पदार्थ जमा हो जाता है? 

मनुष्य के पेट में पेरिटोनियम नामक ऊतक की एक शीट पेट, आंतों, यकृत और गुर्दे समेत पेट के सभी अंगों को चारों तरफ से ढकती है। इसी पेरिटोनियम की दो परतें होती हैं और जब इन दोनों परतों के बीच में तरल पदार्थ बनने लगता है, तब उसे एसाइटिस या जलोदर कहते हैं।

एसाइटिस या जलोदर की स्थिति अक्सर उन लोगों में होती है जिन्हें लिवर का सिरोसिस (स्काररिंग) होता है। जलोदर के लगभग 80% मामलों में मरीज को सिरोसिस की तकलीफ होती है।

एसाइटिस  के प्रकार/वर्गीकरण

जलोदर क्या है और इसका अर्थ जानने के बाद, आइए इस भाग में विस्तार से जानते हैं कि जलोदर कितने प्रकार के होता है और किस आधार पर इसे वर्गीकृत किया जाता है। वर्गीकरण के हिसाब से डॉक्टर द्वारा मरीज का उपचार और स्वास्थ्य स्तिथि निर्धारित की जाती है।

जलोदर निनलिखित तरह से वर्गीकृत किया गया है:

  1. द्रव संचय की गंभीरता के आधार पर
    एसाइटिस या जलोदर का वर्गीकरण, पेट/उदर की गुहा(अंदरूनी खोल या कैविटी) में तरल पदार्थ की मात्रा पर आधारित किया जाता है। जलोदर को निम्नलिखित 3 ग्रेड में वर्गीकृत किया गया है: 
    जलोदर के ग्रेड जलोदर वर्गीकरण विवरण
    ग्रेड 1 जलोदर हल्के जलोदर (mild ascites meaning in hindi) इस ग्रेड में तरल पदार्थ की मात्र कम होती है, और यह अल्ट्रासाउंड परीक्षा द्वारा पता लगाया जा सकता है।
    ग्रेड 2 जलोदर मध्यम जलोदर (moderate ascites meaning in hindi) पेट का फैलाव सममित होता है।
    ग्रेड 3 जलोदर बड़े जलोदर (large/gross ascites meaning in hindi) इस ग्रेड में पेट काफी फूल जाता है, या कह सकते हैं की उदर का अधिक फैलाव हो जाता है।
  2. उपचार के प्रति प्रतिक्रिया के आधार पर
    जलोदर की उपचार के प्रति कैसी प्रतिक्रिया है, इस आधार पर एसाइटिस के निम्नलिखित दो अलग-अलग प्रकार होते हैं। 
    जलोदर वर्गीकरण विवरण
    जलोदर जो जटिल नहीं है (अनकोंपलिकेटेड एसाइटिस )
    1. यह प्रकार सबसे आम प्रकार का जलोदर है। 
    2. उपचार की तरफ अच्छी तरह से प्रतिक्रिया करता है ।
    दुर्दम्य जलोदर (रिफ्रैक्टरी एसाइटिस)
    1. यह प्रकार आम नहीं  है, कुछ ही लोगों (5 से 10 %) में होता है जिनमे उपचार करना बहुत मुश्किल होता है।

आप इसे भी पढ़ सकते हैं: Ascites Fluid

एसाइटिस या जलोदर के लक्षण

एसाइटिस या जलोदर कि वजह से उदर क्षेत्र में धीरे-धीरे तरल पदार्थ का निर्माण होता है। इस की वजह से जलोदर से पीढ़ित मरीज को तक्लीफ़ हो सकती है और विभिन्न लक्षणो का सामना करना पड़ सकता है।

जब जलोदर की बात आती हैं, तो इसका मुख्य लक्षण एक बढा हुआ पेट और तेजी से वजन का बढ़ना होता है। अन्य लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. पैरों के निचले हिस्से में सूजन
  2. सांस लेने में कठिनाई
  3. पाचन संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं जैसे:
    1. पेट में सूजन या गैस
    2. पेट दर्द
    3. भूख न लगना
    4. अपच और जी मिचलाना/उलटी आना 
    5. कब्ज
  4. पीठ दर्द
  5. बैठने में कठिनाई
  6. अत्यधिक थकान महसूस करना 
  7. परिपूर्णता या भारीपन महसूस करना 
  8. बवासीर की समस्या 

एसाइटिस या जलोदर के कारण

पेट में तरल पदार्थ इकट्ठा होने के विभिन्न कारण और जोखिम कारक हो सकते हैं। जलोदर के कुछ सामान्य कारण और जोखिम कारक यहाँ दिए गए हैं:

  1. जलोदर का सबसे आम कारण यकृत का सिरोसिस है और सिरोसिस का सबसे आम कारण बहुत अधिक शराब पीना है।
  2. विभिन्न प्रकार के कैंसर भी इस स्थिति का कारण बन सकते हैं। कैंसर के कारण होने वाले जलोदर अक्सर बहुत उन्नत या  एक बार ठीक होने के बाद दुबारा होने वाले यानि आवर्तक कैंसर के साथ होते हैं। 
  3. जलोदर अन्य समस्याओं के कारण भी हो सकता है जैसे:  
    1. हृदय की स्थिति
    2. डायलिसिस
    3. कम प्रोटीन स्तर
    4. संक्रमण 

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एसाइटिस या जलोदर के जोखिम कारक

ऐसे कुछ जोखिम कारक होते है जो जलोदर के विकास की संभावना को बढ़ा सकते हैं, खासकर जो स्तिथि सिरोसिस का कारण बन सकती है, उससे जलोदर विकसित होने का अधिक खतरा होता है। इन कारकों में शामिल हैं:

  1. गैर-शराब से संबंधित वसायुक्त यकृत रोग (एन ए एफ एल डी)
  2. अत्यधिक शराब का सेवन करना 
  3. लिवर का वायरस संक्रमण (हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी)
  4. ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस
  5. आनुवंशिक यकृत रोग जैसे हेमोक्रोमैटोसिस, विल्सन रोग और अल्फा-1-एंटीट्रिप्सिन की कमी

एसाइटिस या जलोदर के लिए रोकथाम

एसाइटिस या जलोदर एक ऐसी स्तिथि है, जिसके विकसित होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं। इन्ही कारणों को संभोदित करते हुए जलोदर कि रोकथाम की जा सकती है। जलोदर के लिए कुछ निवारक उपायों का यहाँ विवरण किया गया है।

एक स्वस्थ जीवन शैली जीना ही जलोदर को रोकने का सबसे बेहतरीन तरीका है जिसमे शामिल हैं:

  1. पौष्टिक आहार का सेवन करें: ताजे फल और हरी सबजियो को आहार में शामिल करें।  शराब और नमक के सेवन को सीमित करना चाहिए जिससे रक्तचाप नियंत्रित रहे। इसकी वजह से जलोदर के विकसित होने की संभावना कम हो जाती है। 
  2. धूम्रपान न करें: धूम्रपान करने से लिवर कि सूजन बढ़ सकती है, जिसकी वजह से सिरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। जलोदर को विकसित होने से रोकने के लिए धूम्रपान त्याग देना चाहिए।   
  3. नियमित रूप से व्यायाम करें और स्वस्थ वजन बनाए रखें: मोटापा या शरीर का ज्यादा वजन लिवर को क्षति पहुचा सकता है, इसलिए नियमित व्यायाम वजन को नियंत्रित करते हुए जलोदर के विकसित होने की संभावना को कम कर देता है। 
  4. हेपेटाइटिस संक्रमण से लिवर कि क्षति और उसकी वजह से जलोदर होने की संभावना को कम करने के लिए 
    1. सुरक्षित सेक्स का अभ्यास करें 
    2. मनोरंजनात्मक ड्रग्स का उपयोग न करें

एक स्वस्थ जीवन शैली न सिर्फ जलोदर की रोकथाम करती है, बल्कि समस्त स्वास्थ्य का ध्यान रखती है और विभिन्न बीमारियों से बचाती है।

एसाइटिस या जलोदर का निदान

जलोदर के निदान के लिए चिकित्सक आबसे पहले मरीज का सम्पूर्ण मेडिकल इतिहास लेंगे, उनके  लक्षणों को विस्तार से पूछेंगे और व्यापक रूप से पेट का परीक्षण करेंगे।

सभी तरह की जाँचों का निमलिखित उद्देश्य है:

  1. जलोदर की उपस्थिति की पुष्टि।
  2. जलोदर के कारण का पता लगाना।
  3. जलोदर के कारण किसी भी जटिलता का आकलन करना। 

चिकित्सक अन्य परीक्षण जैसे रक्त परीक्षण, द्रव्य का परीक्षण, और इमेजिंग तकनीक का सुझाव दे सकते हैं।

  1. रक्त परीक्षण में शामिल हैं:  
    1. गुर्दे फ़ंक्शन टेस्ट (kidney function test): गुर्दे कितनी तरह से सामान्य हैं या प्रभावित है, यह जानने के लिए गुर्दे के फ़ंक्शन टेस्ट किये जाते है। ये परीक्षण यह जांचते हैं कि गुर्दे शरीर से अनवांछित पदार्थों कितनी अच्छी तरह साफ करते हैं। गुर्दा परीक्षण में रक्त परीक्षण, या फिर 24 घंटे के मूत्र का नमूना या दोनों शामिल हो सकते हैं। 
    2. लिवर फ़ंक्शन टेस्ट (एल एफ टी): लिवर फ़ंक्शन टेस्ट करके लिवर कि स्तिथि के बारे में पता लगाया जाता है। यह एक रक्त परीक्षण होता है, जिसमे रक्त के अंदर कुछ प्रोटीन, और एन्ज़ाइम की सामान्य से अधिक मात्रा मे उपस्तिथि से लिवर कि क्षति के बारे में जानकारी मिल सकती है। 
  2. यदि सिरोसिस की पुष्टि हो जाती है, तो कारण को स्पष्ट करने के लिए और परीक्षणों की आवश्यकता होगी, जैसे, हेपेटाइटिस बी या हेपेटाइटिस सी के लिए रक्त का परीक्षण करना अनिवार्य हो जाता है। 
  3. पैरासेन्टेसिस (द्रव का नमूना):  सुई का उपयोग करके पेट से द्रव का एक नमूना लिया जा सकता है। कैंसर या संक्रमण जैसे रोग के संकेतों के लिए इस द्रव की जाँच की जाती है। 
  4. इमेजिंग: अल्ट्रासाउंड, एमआरआई या सीटी स्कैन का उपयोग करके पेट के अंदर की छवियों का उपयोग करके जलोदर का पता लगाया जाता है। 
    1. अल्ट्रासाउंड: इस प्रक्रिया मे उच्च-आवृत्ति ध्वनि तरंगों का उपयोग कर के शरीर के अंदर के हिस्से की छवि बनाई जाती है। अल्ट्रासाउंड जलोदर द्रव की मात्रा निर्धारित कर सकता है और जलोदर के आकलन में एक महत्वपूर्ण उपकरण होता है। 
    2. एमआरआई: पेट के अंदर के सारे अंगों की स्तिथि कि सम्पूर्ण जानकारी के लिए एम आर आई का उपयोग किया जाता है। एमआरआई एक चुंबकीय क्षेत्र और रेडियोफ्रीक्वेंसी ऊर्जा का उपयोग करके छवियां बनाता है। 
    3. सीटी स्कैन: सीटी स्कैन बहुत सारे एक्स-रे का उपयोग कर के पेट के अंदर कि कम्प्यूटरीकृत छवियां बनाता है और जलोदर का पता लगाने मे मदद करता है। 
  5. लेप्रोस्कोपी: लैप्रोस्कोपी एक प्रकार की सर्जिकल प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सर्जन एक छोटे सा चीरा (कट) लगाकर लपरोस्कोप से शरीर के अंदर देख लेता है। 
    1. इस प्रक्रिया में छोटे से कट के माध्यम से शरीर में एक लंबी, पतली ट्यूब को कैमरे के साथ सम्मिलित किया जाता है, इस ट्यूब को लैप्रोस्कोप कहा जाता है। 
    2. कैमरा शरीर के अंदर से वीडियो मॉनीटर पर तस्वीरें भेजता है और सर्जन को शरीर के अंदर देखने की अनुमति देता है। 
    3. इसका उपयोग जलोदर के निदान में मदद करता है, खासकर तब जब जलोदर के कारण का पता नहीं चल पा रहा होता है। 

डॉक्टर के परामर्श की तैयारी कैसे करें?

डॉक्टर से परामर्श करने से पहले ही तेयारी कर ले और निमलिखित बातों का ध्यान रखें: 

  1. उन सभी प्रश्नों को ध्यान से लिख लें जिनका उत्तर मरीज को डॉक्टर से जानने की उत्सुकता है।
  2. किसी को साथ ले जाना चाहिए ताकि मरीज आराम से सवाल पूछ सकें और सवालों का उत्तर साथ गए व्यक्ति  भी याद रख सकें।
  3. मुलाक़ात के समय, नई दवाओं, उपचारों, या परीक्षणों के नाम और प्रदाता द्वारा दिए गए किसी भी नए निर्देश को जरूर विस्तार से लिखें।
  4. यदि मरीज के पास अनुवर्ती नियुक्ति है, तो उस यात्रा की तिथि, समय और उद्देश्य लिखें।

डॉक्टर से क्या उम्मीद करें?

मरीज अपने डॉक्टर से उम्मीद कर सकते हैं कि वे उनकी तकलीफों से शुरुआत करते हुए  उनके  मेडिकल इतिहास के बारे मे पूछेंगे। तत्पश्चात वे बारीकी से पेट का परीक्षण करेंगे, और ऊपर दिये गए टेस्टस का सुझाव देंगे अन्यथा टेस्टस के माध्यम से पता लगाएंगे कि आखिर जलोदर कितना गंभीर है, और उसका कारण क्या है।

मरीज को डॉक्टर से कौन से सवाल पूछने चाहिए?

जलोदर के मरीज अपने डॉक्टर से निम्नलिखित सवाल पूछ सकते हैं:

  1. क्या सर्जरी की आवश्यकता होगी?
  2. कौन-कौन से उपचार उपलब्ध हैं?
  3. क्या लिवर प्रत्यारोपण पर विचार करना चाहिए?
  4. स्वस्थ रहने के लिए  उसे  किस आहार का पालन करना चाहिए?
  5. कौन सी दवाएं उपलब्ध हैं?
  6. क्या जलोदर एक बार ठीक होने के बाद वापस आ सकता है? 

इसके उपरांत चिक्तसक से जलोदर के होने का कारण, निदान, उपचार, रोकथाम, और उपचार से जुड़ी जटिलताओ पर विस्तार से बातचीत करें।

एसाइटिस या जलोदर के उपचार

एसाइटिस या जलोदर के उपचार में कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे एसाइटिस को कम किया जाता है, और उससे होने वाली तकलीफ में आराम मिलता है।  इसके लिए चिकित्सक द्वारा उपचार में निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते है:

जीवन शैली में बदलाव

पेट में तरल पदार्थ के निर्माण को कम करने और जलोदर से जुड़ी जटिलताओं को रोकने के लिए जीवन शैली में बदलाव मुख्य भूमिका निभाता है, और इसमे शामिल है:

  1. नमक का सेवन कम मात्रा मे करें। 
    1. जलोदर वाले लोगों के लिए, अनुशंसित सोडियम सेवन एक दिन में २,००० से ४,००० मिलीग्राम से कम होना चाहिए।
    2. स्वास्थ्य सेवा प्रदाता या आहार विशेषज्ञ बता सकते हैं कि कम सोडियम वाले आहार का पालन कैसे करें। 
    3. पोटेशियम युक्त नमक के विकल्प से बचें। ऐसा इसलिए है क्योंकि जलोदर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाएं पोटेशियम के स्तर को बढ़ा सकती हैं।
  2. पीने वाले तरल पदार्थों की मात्रा में कटौती करें।
  3. शराब पीना बंद करे ।

जलोदर का घरेलू उपचार: घर पर ही जलोदर पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है और इसमे मुख्य रूप से जीवन शैली मे बदलाव शामिल होता है जैसे नमक के सेवन को कम करके, शराब और धूम्र पान को बिल्कुल बंद करके, और निरंतर रूप से व्यायाम करने से एसाइटिस द्रव को घर पर काबू मे किया जा सकता है।

जलोदर के लिए आयुर्वेदिक उपचार

कुछ शोध के अनुसार आयुर्वेदिक दवाएं, जलोदर द्रव में राहत प्रदान कर सकती है। अभयादि मोदक, गाय के मूत्र, शरपुंखा स्वरस, पुनर्नवा क्वाथ के साथ नित्य विरेचन (दैनिक चिकित्सीय विरेचन) देने से जलोदर द्रव को कम करने मे मदद मिलती है।

इसके अलावा यह भी देखा गया है कि इन आयुर्वेदिक दवाओ और प्रक्रियाओ का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता है।

कुछ आयुर्वेदिक दवाएं और जड़ी बूटियां हैं जैसे आरोग्यवर्धिनी वटी और सर्पुंखा स्वरसा, पुनर्नवादि क्वाथ और पुनर्नवादि मंडुरा, हरीतकी आदि जो जलोदर से राहत देने मे लाभकारी साबित हुई हैं।

जलोदर के लिए होम्योपैथिक उपचार

होमेयोपथी में कुछ दवाइयाँ जलोदर के लक्षणो को कम करने के लिए असरदार हो सकती हैं जैसे एसिटिकम एसिडम। ध्यान रहे कि होमेयोपथी कि दवाये चिकित्सक कि निगरानी में ही ली जाएँ क्योंकि हाल में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि कई दवाईया लिवर को क्षति पहुचा सकती हैं। 

दवाएं

  1. मूत्रवर्धक (डाईउरेटिक) दवाएं: शरीर में तरल पदार्थ को कम करने में मदद करने के लिए डॉक्टर मूत्रवर्धक (डाईउरेटिक) दवाएं देते हैं ताकि धीरे-धीरे सर जमा हुआ तरल पदार्थ शरीर से बाहर निकाल जाए।
  2. एन्टीबीओटिक दवाई: अगर किसी मरीज को संक्रमण कि वजह से सपोनटेनियस बैक्टिरीअल पेरिटनाइटिस (एस बी पी) हो जाता है, तो उसको एंटिबयोटिक्स दी जाती हैं। 

जलोदर का उपचार शल्य चिकित्सा द्वारा

कभी-कभी, जलोदर में सुधार के लिए मूत्रवर्धक दवाएं और कम सोडियम वाला आहार पर्याप्त नहीं होता है। इनके साथ में अन्य उपचारों की आवश्यकता हो सकती है जिसमे शामिल हैं I

  1. पैरासेन्टेसिस: जलोदर के कुछ मामलों में, डॉक्टर सुई के माध्यम से पेट से बड़ी मात्रा में तरल पदार्थ निकालने की सलाह देते हैं।  इस प्रक्रिया को पैरसेन्टेसीस कहते हैं, और यह ज्यादातर तब किया जा सकता है जब रोगी को सांस लेने में परेशानी हो । 
  2. ट्रांसजुगुलर इंट्राहेपेटिक पोर्टोसिस्टमिक शंट (टिप्स): बहुत जटिल स्थितियों में, टिप्स नामक एक विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता हो सकती है। इस प्रक्रिया में, जलोदर पैदा करने वाले उच्च दबाव को कम करने के लिए रक्त वाहिकाओं के बीच यकृत के अंदर, एक संबंध बनाया जाता है। 
    1. लीवर की एक रक्त वाहिका में तार की जाली (स्टेंट) डाली जाती है। 
    2. फुलाए जाने पर, स्टेंट लीवर को बायपास करने के लिए एक चैनल (शंट) बनाता है।नीम्नलिखित स्तिथियों में  मरीज को टिप्स की जरूरत पड़ सकती है:
      1. यदि मरीज़ के जलोदर पर अन्य उपचारों का असर नहीं हो रहा हैं। 
      2. यदि मरीज़ को प्रति माह कई पैरासेन्टेसिस की आवश्यकता है। 
      3. यदि मरीज़ यकृत प्रत्यारोपण (लीवर ट्रैन्ज़्प्लैन्टैशन ) क उम्मीदवार नहीं हैं। 
  3. लीवर ट्रांसप्लांट: लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत अक्सर गंभीर सिरोसिस के मामलों में पड़ सकती है जब लीवर फेल (यकृत का काम करना बंद होना) हो रहा हो। लिवर ट्रांसप्लांट एक जीवन रक्षक शल्य प्रक्रिया है जिसमे रोगग्रस्त लिवर को स्वस्थ लिवर से बदल दिया जाता है। 
उपचार उपचार लागत
एसिटिक टैप ₹२५,००० से ₹२,००,०००
ट्रांसजुगुलर इंट्राहेपेटिक पोर्टोसिस्टमिक शंट (टिप्स) ₹१,७०,००० से ₹४,००,०००
लीवर ट्रांसप्लांट ₹१५,००,००० से ₹३५,००,०००

सुचना: उपचार का तरीका और प्रक्रियाओं का चयन रोगी की स्वास्थ्य स्थिति और आपके इलाज करने वाले डॉक्टर की राय पर निर्भर करता है।

एसाइटिस या जलोदर की जटिलताओं

लोदर कई जटिलताओं को जन्म दे सकता है, खासकर जब इसका इलाज नहीं किया जाता है या खराब प्रबंधन किया जाता है। जलोदर की कुछ संभावित जटिलताओं में शामिल हैं:

  1. पेट की समस्याएं: अत्यधिक तरल पदार्थ के निर्माण और उसके जमा होने की वजह से पेट दर्द, बेचैनी और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। ये लक्षण खाने, चलने और दैनिक गतिविधियों को करने की क्षमता में बाधा डाल सकते हैं।
  2. संक्रमण: तरल पदार्थ संक्रमित हो सकते हैं, जिसे सपोनटेनियस बैक्टिरीअल पेरिटोनिटिस कहा जाता है। जिसकी वजह से बुखार और पेट दर्द की शिकायत हो सकती है। अगर ऐसी तकलीफ होती है शीग्र ही चिकित्सक से मिलना चाहिए। 
  3. हेपेटिक हाइड्रोथोरैक्स, या फेफड़ों में तरल पदार्थ: इस स्तिथि में पेट का तरल पदार्थ फेफड़ों में भर जाता है, आमतौर पर दाहिनी ओर की तरफ के फेफड़े में। इसकी वजह से सांस की तकलीफ, खांसी, सीने में बेचैनी और हाइपोक्सिमिया (रक्त में ऑक्सीजन की कमी) का अनुभव कर सकते हैं। द्रव को निकालने के लिए थोरैसेन्टेसिस की आवश्यकता हो सकती है।
  4. जलोदर संबंधी हर्निया: पेट के दबाव में वृद्धि से हर्निया हो सकता है, विशेष रूप से गर्भनाल और वंक्षण हर्निया। 
  5. गुर्दे की विफलता: यदि सिरोसिस बिगड़ जाता है, तो इससे गुर्दे की विफलता (हेपेटोरेनल सिंड्रोम) हो सकती है। 

डॉक्टर को कब देखना है?

अगर कोई व्यक्ति एसाइटिस या जलोदर की समस्या से पीढ़ित हैं और बुखार और पेट दर्द के लक्षण आते है तो उसे तुरंत आपातकालीन कक्ष में जाकर डॉक्टर से मिलना चाहिए। 

समय पर इलाज नहीं किया तो जोखिम?

एसाइटिस या जलोदर जिगर की क्षति का एक महत्वपूर्ण संकेत है। यदि जलोदर को अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो यह जीवन को क्षति पहुचाने वाली जटिलताओं को जन्म दे सकता है। लेकिन ठीक समय पर उचित उपचार और आहार में बदलाव के साथ, जलोदर का प्रबंधन कर सकते हैं। 

जलोदर के लिए आहार

आहार जलोदर के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, पेट की गुहा में तरल पदार्थ के संचय की विशेषता वाली स्थिति। जबकि जलोदर के अंतर्निहित कारण और गंभीरता के आधार पर आहार संबंधी सिफारिशें भिन्न हो सकती हैं, यहां कुछ सामान्य दिशानिर्देश दिए गए हैं जो मदद कर सकते हैं:

  1. सोडियम प्रतिबंध: शरीर में द्रव प्रतिधारण को कम करने के लिए सोडियम (नमक) का सेवन सीमित होना चाहिए। 
    1. उच्च-सोडियम खाद्य पदार्थ, जैसे प्रसंस्कृत और पैकेज्ड खाद्य पदार्थ, डिब्बाबंद सूप, फास्ट फूड और नमकीन स्नैक्स से बचना चाहिए। 
    2. इसके बजाय, नमक के बजाय स्वाद के लिए जड़ी-बूटियों और मसालों का उपयोग करके घर पर तैयार ताजा, संपूर्ण खाद्य पदार्थों का चयन करें।
  2. द्रव नियंत्रण: जलोदर की गंभीरता के आधार पर, अत्यधिक द्रव संचय को रोकने के लिए तरल पदार्थ का सेवन प्रतिबंधित करने की आवश्यकता हो सकती है। 
    1. आपका स्वास्थ्य सेवा प्रदाता आपको प्रत्येक दिन उपभोग करने के लिए उचित मात्रा में तरल पदार्थों के बारे में मार्गदर्शन करेगा। 
    2. उनकी सिफारिशों का पालन करना और अपने तरल पदार्थ के सेवन की बारीकी से निगरानी करना महत्वपूर्ण है।
  3. पर्याप्त प्रोटीन: संपूर्ण स्वास्थ्य को बनाए रखने और उचित द्रव संतुलन को बढ़ावा देने के लिए अपने आहार में पर्याप्त प्रोटीन शामिल करना महत्वपूर्ण है। प्रोटीन के अच्छे स्रोतों में लीन मीट, पोल्ट्री, मछली, अंडे, डेयरी उत्पाद, फलियां और टोफू शामिल हैं।
  4. स्वस्थ वसा: स्वस्थ वसा का चयन आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। अपने आहार में असंतृप्त वसा के स्रोतों को शामिल करें, जैसे कि एवोकाडो, नट्स, बीज और जैतून का तेल। प्रसंस्कृत और तले हुए खाद्य पदार्थों से अस्वास्थ्यकर वसा को सीमित करें या उससे बचें।
  5. छोटे भोजन: बड़े भोजन का सेवन करने के बजाय, पूरे दिन छोटे, अधिक छोटे भोजन करने का विकल्प चुनें। यह पाचन तंत्र पर तनाव को कम करने और पोषक तत्वों के बेहतर पाचन और अवशोषण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। 

निष्कर्ष

जलोदर ज्यादातर जिगर की क्षति का संकेत होता है, विशेष रूप से सिरोसिस से पीढ़ित लोग इसे विकसित कर सकते हैं। समय पर सही उपचार और आहार में बदलाव के साथ, जलोदर का प्रबंधन किया जा सकता हैं, जिसके लिए कम मात्रा में नमक का सेवन करना जलोदर के लिए सबसे प्रभावी उपचारों में से एक है। इसके अलावा कुछ लोगों में मूत्रवर्धक दवाई और सर्जिकल प्रक्रिया भी लाभकारी साबित होती है।

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जलोदर पर अधिक पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर जा सकते हैं:

फैटी लिवर डाइट चार्ट लिवर कैंसर

सन्दर्भ

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Last Updated on: 26 June 2023

Disclaimer: यहाँ दी गई जानकारी केवल शैक्षणिक और सीखने के उद्देश्य से है। यह हर चिकित्सा स्थिति को कवर नहीं करती है और आपकी व्यक्तिगत स्थिति का विकल्प नहीं हो सकती है। यह जानकारी चिकित्सा सलाह नहीं है, किसी भी स्थिति का निदान करने के लिए नहीं है, और इसे किसी प्रमाणित चिकित्सा या स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से बात करने का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

समीक्षक

Dr. Aman Priya Khanna

Dr. Aman Priya Khanna

MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES

12 Years Experience

Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More

लेखक

Pranjali Kesharwani

Pranjali Kesharwani

Bachelor of Pharmacy (Banaras Hindu University, Varanasi)

2 Years Experience

She is a B Pharma graduate from Banaras Hindu University, equipped with a profound understanding of how medicines works within the human body. She has delved into ancient sciences such as Ayurveda and gained valuab...View More

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