
बच्चे के जन्म के लिए प्रजनन अंग का अहम योगदान होता है। महिलाओं के शरीर में ऐसा ही एक अंग अंडाशय होता है। प्रजनन क्षमता के साथ-साथ हार्मोनल संतुलन बनाए रखने के लिए कार्यात्मक अंडाशय आवश्यक हैं।
अंडाशय की समस्याओं से एनीमिया, हृदय रोग का खतरा बढ़ जाना और दर्द सहित व्यवस्थित समस्याएं हो सकती हैं। आइए जानते हैं अंडाशय से जुड़ी अहम जानकारी।
मासिक धर्म के दौरान हर महीने एक अंडे (अंडाणु) के विकास और रिलीज के लिए अंडाशय जिम्मेदार होते हैं। ये अंग महिला सेक्स हार्मोन के उत्पादन में भी शामिल होते हैं, जो जीवन भर महिलाओं में शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों को प्रभावित करते हैं।
डिम्बग्रंथि स्वास्थ्य प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता हैं। अंडाशय हार्मोनल परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होते हैं और युवावस्था के दौरान महिलाओं के यौन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है, अंडाशय धीरे-धीरे हार्मोन का उत्पादन कम कर देते हैं। इससे रजोनिवृत्ति हो जाती है, जिससे प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है।
महिला के शरीर में स्थित दो अंडाशय होते हैं। पेट के निचले हिस्से में गर्भाशय के दायीं और बायीं ओर अंडाशय स्थित होता है। ये एक प्रकार की ग्रंथि है जिनका आकार अंडाकार होता है। महिलाओं के शरीर में अंडाशय की मदद से अंडो (डिंब) का भंडारण होता है। अंडाशय की आंतरिक संरचना निम्न प्रकार होती है:


महिलाओं के शरीर में माहवारी और गर्भावस्था के दौरान कई परिवर्तन होते हैं। अंडाशय इन क्रियाओं को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार से मदद करता है:
कुछ बीमारियां अंडाशय के कार्य करने की क्षमता को बिगाड़ सकती है। डिम्बग्रंथि रोग भारत में महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चिंता का विषय है, जिसका उनके प्रजनन स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। प्रमुख डिम्बग्रंथि स्थितियाँ जो महिलाओं के जीवन को प्रभावित करती हैं।
किसी समस्या के होने पर हॉर्मोन के कारण होने वाली क्रियाएं प्रभावित होती हैं। जब अंडाशय से जुड़ी स्थितियां पैदा हो जाती हैं तो शरीर में विभिन्न प्रकार के लक्षण दिख सकते हैं:
लक्षणों को पहचानकर तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
शरीर में विभिन्न प्रकार के हॉर्मोनल परिवर्तन अंडाशय के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। साथ ही अनुवांशिक कारणों से भी अंडाशय की बीमारियों की संभावना रहती है। अंडाशय से जुड़ी बीमारियां निम्न कारणों से हो सकती हैं:
डिम्बग्रंथि स्थितियों का विशेष रूप से निदान करने के लिए कोई एकल परीक्षण नहीं है। महिला के शरीर में अंडाशय की बीमारी संबंधी लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टर जांच कराने की सलाह दे सकते हैं:
जब किसी कारण से अंडाशय स्थिति पैदा हो जाती है तो इससे जुड़े कार्य प्रभावित होते हैं। अंडाशय से जुड़ी स्थितियों का इलाज संभव है। अंडाशय की स्थितियों का इलाज निम्न प्रकार से किया जाता है:
यदि महिला को किसी कारण से अंडाशय संबंधी समस्या हुई है तो बिना सर्जरी के भी इलाज किया जा सकता है। इसमें निम्नलिखित इलाज शामिल हैं-
अंडाशय की स्थिति के लिए घरेलू उपाय - अंडाशय संबंधी समस्याओं से जूझ रही महिलाओं के लिए कुछ घरेलू उपाय फायदेमंद हो सकते हैं। निम्न घरेलू उपाय पीसीओएस के लक्षणों में राहत पहुंचा सकते हैं:
आयुर्वेदिक इलाज - आयुर्वेदिक औषधियां हॉर्मोन के असंतुलन को सुधारने के साथ ही प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। अंडाशय के इलाज में निम्न आयुर्वेदिक इलाज का इस्तेमाल किया जा सकता है:
होम्योपैथी इलाज - माहवारी में होने वाली अनियमितता, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, अंडाशय में सिस्ट आदि का इलाज होम्योपैथी दवाओं की मदद से किया जाता है। इसमें शामिल हैं:
एलोपैथी दवाएं - कभी-कभी कमर के निचले हिस्से में दर्द की समस्यां पैदा होती है। ऐसे में डॉक्टर दर्द से राहत के लिए एसिटामिनोफेन या इबुप्रोफेन दवाएं दे सकते हैं। अंडाशय की स्थिति में निम्नलिखित दवाएं इस्तेमाल हो सकती हैं-
अंडाशय स्थिति का सर्जरी से इलाज - जब अंडाशय की बीमारी दवाओं या अन्य उपचार से ठीक नहीं होती है तो सर्जरी की मदद ली जा सकती है। अंडाशय में सिस्ट या कैंसर फैलने पर अंडायशय को हटाने में निम्न सर्जरी की जा सकती है-
ओफोरेक्टोमी: ये एक प्रकार की शल्य चिकित्सा है, जिसके माध्यम से एक या फिर दोनों अंडाशय को निकाल दिया जाता है। ओवरी सिस्ट, अंडाशय का कैंसर, एंडोमेट्रियोसिस संक्रमण आदि स्थिति में ओफोरेक्टोमी की जरूरत पड़ सकती है।
डिम्बग्रंथि स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए रोकथाम महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विभिन्न डिम्बग्रंथि रोगों की शुरुआत से बचने में मदद कर सकता है।
जीवनशैली में बदलावों को अपनाकर, महिलाएं अपने जोखिम को कम कर सकती हैं और बेहतर प्रजनन कल्याण का आनंद ले सकती हैं। इसमें शामिल है:
अंडाशय प्रत्येक मासिक धर्म के मध्य पर एक अंडा छोड़ता है। शरीर में हॉर्मोनल बदलाव अंडाशय की बीमारी से संबंधित हो सकते हैं। अगर आपको कभी भी अंडाशय की बीमारी के लक्षण नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं और इलाज के बारे में जानकारी लें।
अक्सर महिलाएं जननांग संबंधी बीमारियों के बारे में बात करने से हिचकिचाती हैं। शरीर के बेहद महत्वपूर्ण अंग के बारे में हो सकता है कि आपके मन में भी कई सवाल हो। अगर ऐसा है तो आज ही आप HexaHealth के एक्सपर्ट से ऑनलाइन या ऑफलाइन संपर्क कर सकते हैं। हम आपको इस विषय के बारे में सभी जरूरी बातें साझा करेंगे।
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महिलाओं के शरीर में अंडाशय एक प्रकार की ग्रंथि होते हैं जो अंडे के उत्सर्जन से लेकर उनके रखरखाव के लिए जिम्मेदार होती है।
अंडाशय से निकलने वाले हॉर्मोन प्रोजेस्ट्रॉन और एस्ट्रोजन निषेचन से लेकर गर्भावस्था की पूरी क्रिया के दौरान विभिन्न कार्यों में योगदान देते हैं।
महिलाओं के शरीर में अंडाशय एक प्रजनन अंग है। इसे ओवरी के नाम से भी जाना जाता है।
गर्भाशय के ऊपरी हिस्से में दाई और बाई ओर दो अंडाशय स्थित होते हैं। इनका आकार अंडाकार होता है। अंडाशय की मदद से महिला में अंडे का उत्सर्जन होता है।
अंडाशय औरत के निचले पेट में गर्भाशय के दोनों ओर (दाएं और बाएं) स्थित होते हैं।
जब माहवारी की शुरुआत होती है (२८ दिन का चक्र) तो १४वें दिन अंडाशय से एक अंडा निकलता है। सीधे शब्दों में समझा जाए तो माहवारी के मध्य या बीच में अंडाशय से अंडा निकलता है।
जब एक महिला का विकास (फीटस के रूप में) होता है, तो उसके पास 6 मिलियन अंडे होते हैं।
कुछ महिलाओं में दो अंडों का उत्सर्जन भी हो सकता है जिसके कारण जुड़वा बच्चे हो सकते हैं।
अंडे बनने की प्रक्रिया डिम्बग्रंथि चरण (ओव्यूलेशन) के समय शुरू होती है।
ओवरी या अंडाशय का आकार अंडाकार होता है। अंडाशय में सिस्ट (कैंसरस या गैर कैंसरस गांठ) के कारण या फिर उम्र के साथ परिवर्तन भी हो सकता है।
अंडाशय की लंबाई लगभग ३. ५ सेमी, चौड़ाई २ सेमी और मोटाई १ सेमी होती है। इसका आकार बादाम जैसा होता है।
अंडाशय नवजात बच्चे के जन्म के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
महिला के प्रजनन अंग में महत्वपूर्ण अंडाशय के कार्य निम्नलिखित हैं।
अंडाशय की मदद से डिम्बग्रंथि चरण की शुरूआत होती है। डिम्बग्रंथि चरण में अंडे का उत्सर्जन होता है।
अंडाशय में मुख्य रूप से दो हॉर्मोन पाए जाते हैं।
ओवुलेशन की प्रक्रिया माहवारी के १४ वें दिन शुरू होती है। ओवुलेशन शुरू होने के करीब दो सप्ताह बाद माहवारी शुरू हो जाता है। ओव्यूलेशन की जानकारी देने वाली किट की मदद से इसकी जांच की जा सकती है।
ओवरी या अंडाशय अंडाकार संरचना है, जो गर्भाशय के दोनो ओर स्थित होती है। अंडाशय बाहर की ओर एक परत से ढका रहता है जिसे डिम्बग्रंथि उपकला कहते हैं।
गर्भधान की प्रक्रिया महिला के माहवारी और डिम्बग्रंथि चरण पर निर्भर करती है।
महिला के प्रजनन तंत्र का हिस्सा ओवरी और बच्चेदानी होती हैं। बच्चे के जन्म में दोनों ही अंग का महत्वपूर्ण कार्य होता है।
महिला की उम्र बढ़ने के साथ ही अंडे की संख्या कम होने लगती है। जन्म के समय लड़की में 1 मिलियन अंडे होते हैं। युवावस्था में पहुंचने पर ३00,000 अंडे ही बचते हैं।
अंडाशय के प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं:
अंडाशय का संक्रमण होने पर लक्षण या तो न के बराबर या बहुत कम नजर आते हैं। इसके लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं-
हां! ऐसा संभव है। जब माहवारी के बाद अंडाशय से अंडे का उत्सर्जन नहीं होता है तो अंडाशय की कमी हो सकती है। इस कारण से महिला में बांझपन की समस्या पैदा हो जाती है।
जब ओवरी में समस्या होती है तो डॉक्टर कुछ परिक्षण कराने की सलाह दे सकते हैं। परिक्षण बीमारी के लक्षणों पर निर्भर करते हैं। अंडाशय के निदान के लिए निम्न टेस्ट किए जा सकते हैं-
अंडाशय के रोगों का इलाज बिना सर्जरी या फिर सर्जरी की मदद से किया जाता है। डॉक्टर जांच के बाद महिला को निम्नलिखित उपचार की सलाह दे सकते हैं-
ओवरी या अंडाशय के सभी रोगों से बचना संभव नहीं है। कुछ अच्छी आदतों को अपनाकर बीमारी के लक्षणों में सुधार किया जा सकता है। निम्न बातें अंडाशय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी हैं-
महिला के प्रजनन अंग अंडाशय से संबंधित कुछ रोग ऐसे होते हैं, जिनमें जीवनशैली पर ध्यान देने से सुधार हो सकता है। हॉर्मोन की गड़बड़ी में सुधार करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए:
ओवरी महिला का प्रजनन अंग है। यदि अंडाशय को निकाल दिया जाए तो निम्न समस्याएं हो सकती हैं:
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Last Updated on: 10 July 2024

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