सीडीसी द्वारा की गई रिसर्च के अनुसार, डायबिटीज़ से लगभग 9.4% लोगों में मोतियाबिंद हो सकता है। डायबिटीज़ वाले लोगों में मोतियाबिंद होने की संभावना उन लोगों की तुलना में दुगनी हो सकती है जिन्हें डायबिटीज़ नहीं है। हो सकता है कि डायबिटीज़ से पीड़ित व्यक्ति पहले उसके लक्षणों को नोटिस न करे। मोतियाबिंद की गंभीरता को कम करने के लिए लोग कई उपचार विकल्पों को आजमा सकते हैं। जो एकमात्र इलाज मोतियाबिंद को पूरी तरह से हटा सकता है वह है सर्जरी। इस ब्लॉग में, आप मधुमेह और मोतियाबिंद के बीच के संबंध को समझेंगे, और मधुमेह दृष्टि को कैसे प्रभावित कर सकता है।
कैटरेक्ट में, जिसे मोतियाबिंद के नाम से भी जाना जाता है, आंखों के लेंस के आसपास सफेद धुंधलापन छाने लगता है, जिससे आँखों की रौशनी पर असर पड़ता है। मोतियाबिंद कॉर्निया के लेंस में बादल जैसी आवृति का बनना है जिससे नज़र धुंधली हो जाती है।
मोतियाबिंद के लक्षण क्या हैं?
क्या मोतियाबिंद और डायबिटीज़ में कोई संबंध है?
डायबिटीज़ कई कारणों से मोतियाबिंद होने की वजह बन सकता है।
डायबिटीज़ वाले लोग रक्त में शर्करा (शुगर) की अधिक मात्रा और नेत्रगोलक और कॉर्निया लेंस के बीच मौजूद लिक्विड (ऐक्वीयस ह्यूमर) में सूजन होने के कारण आंखों में रक्त वाहिकाओं को नुकसान का अनुभव कर सकते हैं।
डायबिटीज़ वाले लोगों में, शरीर जरूरत से कम इंसुलिन का उत्पादन करता है या इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता है। इंसुलिन का काम है रक्त से शर्करा या ग्लूकोज को कोशिकाओं (सेल) में ले जाना, जहां शरीर इसे ऊर्जा के रूप में उपयोग करता है।
पर्याप्त इंसुलिन के बिना, ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाता है। इस कारण से यह रक्तप्रवाह में जमा होने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है।
जब लंबे समय तक रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ी रहती है, तो इससे रक्त वाहिकाओं को नुकसान हो सकता है, जिसमें आंख की रक्त वाहिकाएं भी शामिल हैं। इससे मोतियाबिंद होने की संभावना बढ़ सकती है।
एक्वस ह्यूमर स्वेलिंग
मोतियाबिंद में शामिल एक अन्य कारक में एक्वस ह्यूमर शामिल है, यह एक ऐसा तरल है जो नेत्रगोलक और कॉर्निया लेंस के बीच की जगह को भरता है।
जब एक्वस ह्यूमर में ग्लूकोज का स्तर अधिक होता है, तो लेंस में सूजन आ सकती है, नज़र धुंधली पड़ सकती है। 2021 में डायबिटीज़ और मोतियाबिंद वाले 37 लोगों में एक अध्ययन में पाया गया कि उनमें एक्वस ह्यूमर में ग्लूकोज का स्तर अधिक था। जिन लोगों को रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में सबसे अधिक कठिनाई हुई, उनमें एक्वस ह्यूमर में ग्लूकोज का स्तर उच्चतम था।
जब लंबे समय तक रक्त शर्करा अधिक होता है, तो कॉर्निया के लेंस में एंजाइम ग्लूकोज को सोर्बिटोल में बदल देते हैं जिससे लेंस में सूजन आ सकती है और इसके कारण नज़र धुंधली पड़ सकती है।
मोतियाबिंद विकसित करने वाले डायबिटीज़ के रोगियों के लिए वृद्धावस्था, डायबिटीज़ की लंबी अवधि, और पाचन तंत्र कमज़ोर होना मुख्य जोखिम कारक हैं।
सेंटर्स फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के विश्वसनीय स्रोत के अनुसार, 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के 32% वयस्कों को डायबिटीज़ भी है और मोतियाबिंद भी।
65 से अधिक उम्र के लोग जिन्हें डायबिटीज़ नहीं है उनकी तुलना में इसी उम्र वाले लोग जिन्हें डायबिटीज़ है उन्हें मोतियाबिंद होने की संभावना दोगुनी होती है। 65 से कम उम्र के लोग जिन्हें डायबिटीज़ नहीं है उनकी तुलना में इसी उम्र वाले लोग जिन्हें डायबिटीज़ है उन्हें मोतियाबिंद होने की संभावना तीन से चार गुना होती है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी
रेटिनोपैथी समय के साथ बिगड़ सकती है। मोटे तौर पर इसके दो चरण हैं।
नॉन-प्रोलिफ़ेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (एनपीडीआर)
इसे बैकग्राउंड रेटिनोपैथी के रूप में भी जाना जाता है, यह प्रारंभिक चरण है, जिसमें हल्के या कोई लक्षण नहीं होते हैं। इस स्तर पर, रेटिना की छोटी रक्त वाहिकाएं कमजोर और अवरुद्ध हो सकती हैं। उनमें उभार हो सकता है, या तरल पदार्थ बाहर निकल सकता है। इससे रेटिना के मध्य भाग में सूजन आ सकती है।
रक्त वाहिका की समस्या की गंभीरता के आधार पर एनपीडीआर हल्का, मध्यम या गंभीर हो सकता है।
रेटिना में सूजन या मैक्युला एडिमा से नज़र की समस्या हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आंख के पिछले हिस्से में मौजूद मध्य भाग ही है जिसके माध्यम से लोगों को बारीक विवरण स्पष्ट रूप से दिख पाता है।
प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (पीडीआर)
यह आंखों की जटिलताओं का एक एडवांस्ड स्टेज है। रक्त वाहिकाएं रेटिना को प्रभावी ढंग से रक्त नहीं पहुंचा पाती हैं, क्योंकि वे बंद हो चुकी होती हैं। इसकी भरपाई के लिए नई वाहिकाएं बनने लगती हैं। यह अवस्था केवल कुछ लोगों में विकसित होती है जिन्हें डायबिटीज़ है। इसे विकसित होने में कई साल लग जाते हैं।
हालांकि, नई रक्त वाहिकाएं रेटिना को सामान्य रक्त प्रवाह प्रदान नहीं कर पाती हैं और इससे निशान और झुर्रियां पड़ सकती हैं। गंभीर मामलों में, इससे किसी व्यक्ति की नज़र बिगड़ सकती है। रेटिना अलग भी हो सकता है, जिससे दिखने में परेशानी हो सकती है।
नाजुक नई वाहिकाओं से खून भी बह सकता है। लक्षणों में तैरते धब्बे दिखना शामिल हैं। यदि रेटिना से आंख के केंद्रीय द्रव में ज़्यादा खून बह रहा है, तो व्यक्ति इससे नेत्रहीन भी हो सकता है।
अंतत: आईरिस में नई वाहिकाएं बननी शुरू हो सकती हैं, वह हिस्सा जो लोगों को उनकी आंखों का रंग देता है। यह आंख के अंदर तरल पदार्थ के संतुलन को प्रभावित करता है।
डायबिटीज़ वाले लोगों में रक्त में शर्करा की अधिक मात्रा होने से मोतियाबिंद बनने की संभावना बढ़ जाती है। वृद्ध लोग, जिन्हें ग्लाइसेमिक नियंत्रण में कठिनाई होती है, और जिन लोगों को लंबे समय से डायबिटीज़ है, उनमें मोतियाबिंद होने की संभावना अधिक होती है। एक कृत्रिम लेंस के साथ मोतियाबिंद वाले लेंस को बदलने के लिए आसान सर्जरी की जा सकती है जिससे नज़र को सुधारने में मदद मिलती है और आप फिर से साफ़ देख सकते हैं।
डॉक्टर से कब मिलना चाहिए?
डायबिटीज़ नज़र को धुंधला करने वाले कई कारणों में से एक है। कोई भी व्यक्ति जिसे पहले से ही डायबिटीज़ है, उसे वर्ष में कम से कम एक बार नियमित आँखों की जांच के लिए जाना चाहिए। नियमित आँखों की जांच से किसी भी ऐसी समस्या का पता लगा सकता है जो अभी भी शुरूआती स्तर पर है। आप हेक्साहेल्थ से संपर्क करके आँखों की जांच का अपॉइंटमेंट ले सकते हैं।
डायबिटीज के कारण होने वाले मोतियाबिंद का इलाज सर्जरी के माध्यम से किया जा सकता है।
निम्नलिखित जीवनशैली में बदलाव के अलावा:
इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद, आपको पूरी जानकारी मिल गई होगी कि मोतियाबिंद के बढ़ने में मधुमेह कैसे शामिल है। यदि आप किसी कठिनाई का सामना कर रहे हैं या कोई संदेह है, तो आप निश्चित रूप से हमें हेक्साहेल्थ पर कॉल कर सकते हैं। हम आपकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार हैं। मोतियाबिंद से संबंधित अन्य जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट www.hexahealth.com पर भी जा सकते हैं।
Last Updated on: 12 October 2023
MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
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Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More
MSc. Clinical Research I PG Diploma in Public Health Services Management
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His work in medical content writing and proofreading is noteworthy. He has also contributed immensely to public health research and has authored four scientific manuscripts in international journals. He was assoc...View More
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