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लिवर रोग के लक्षण, कारण, इलाज और परहेज | Liver Disease in Hindi

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Medically Reviewed by Dr. Monika Dubey
Written by Charu Shrivastava, last updated on 5 September 2024| min read
लिवर रोग के लक्षण, कारण, इलाज और परहेज | Liver Disease in Hindi

Quick Summary

  • Liver diseases cause about 2 million deaths every year worldwide. There are many causes of liver disease, one of the main causes is alcohol consumption. When liver function is impaired due to liver disease, some symptoms appear which can help in diagnosing liver disease.
  • In the early stages of liver disease, some home remedies and precautions can cure it. If liver disease is not cured by home remedies and non-surgical treatments, then surgery and liver transplant are the only options left.
  • Let us know what are the symptoms of liver disease, what are the causes of liver disease, what are the treatments and what precautions should be taken in liver disease.

लिवर रोगों से दुनियाभर में हर साल लगभग २० लाख मौतें होती हैं। लिवर रोग होने के कई कारण होते हैं जिसमे से शराब का सेवन एक मुख्य कारण है। लिवर रोग होने पर जब लिवर के कार्यों में बाधा आती है तो कुछ लक्षण दिखते हैं जिससे लिवर रोग का अनुमान लगाया जा सकता है। 

लिवर रोग के शुरुआती स्तर पर कुछ घरेलू उपाय और परहेज करने से यह ठीक किया जा सकता है। अगर घरेलू उपायों और नॉन सर्जिकल उपचारों से लिवर रोग नही ठीक होता है तो अंत में सर्जरी और लिवर ट्रांसप्लांट का विकल्प बचता है। 

आइए जानते हैं की लिवर रोग के लक्षण क्या होते हैं, लिवर रोग किन कारणों से होते हैं, इलाज क्या हो सकते हैं और लिवर रोग में क्या परहेज करना चाहिए।    

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लिवर क्या है ?

लिवर,त्वचा के बाद शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है जो फेफड़ों के ठीक नीचे दाहिनी तरफ होता है। इसका मुख्य काम पित्त और एल्बुमिन का निर्माण करना, रक्त साफ करना, अमीनो एसिड और खून के थक्के ( ब्लड क्लॉटिंग ) को रेगुलेट करना, इन्फेक्शन से बचाना, विटामिन और खनिज ( मिनरल ) को स्टोर करना, ग्लूकोज की प्रक्रिया करना और ऐसे ही कई अन्य कार्य करना होता है। इसलिए लिवर का स्वस्थ होना आवश्यक होता है।

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लिवर रोग क्या है?

जब लिवर में किसी प्रकार का संक्रमण, अधिक चर्बी का जमाव या शराब के कारण लिवर के ऊतक खराब होने लगते हैं तो यह लिवर रोग को उत्पन्न करते हैं। लंबे समय तक इन बीमारियों का उपचार न होने पर लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर स्थिति देखने को मिलती है। अंततः लिवर रोग के कारण लिवर कैंसर और लिवर फेल भी हो सकता है। 

लिवर रोग के लक्षण

लिवर रोग होने पर कुछ लक्षण देखने को मिल सकते हैं। इन लक्षणों के दिखने पर लिवर रोग की आशंका रहती है। लिवर रोग के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं: 

  1. आंखों और त्वचा का रंग पीला हो जाना
  2. पेशाब का रंग गहरा होना
  3. मल का रंग हल्का होना 
  4. पेट में सूजन होने लगती है और इसके अलावा पैरों और एड़ियों में भी सूजन की समस्या बनी रहती है
  5. जी मिचलाना
  6. उल्टी होना 
  7. पेट में तेज या हल्का दर्द होना
  8. भूख में कमी आना और कुछ भी खाने पीने की इच्छा न होना
  9. हाथों, पैरों, पीठ और पेट की त्वचा में खुजली होना

लिवर रोग के कारण

लिवर रोग होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे लिवर में संक्रमण, कुछ जन्मजात बीमारियां और ऑटोइम्यून विकार होने से भी लिवर रोग होता है। लिवर रोग होने के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: 

जीवनशैली के कारण

लिवर रोग होने के पीछे खराब जीवनशैली भी एक मुख्य कारण है। कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं: 

  1. शराब पीना: अल्कोहल का अधिक सेवन लिवर के विषैले पदार्थ निकालने के कार्य में बाधा डालता है और इसके कारण लिवर के ऊपर वसा की परत जमने लगती है जो अल्कोहलिक फैटी लिवर की समस्या को उत्पन्न  
  2. पोषक तत्वों की कमी: कई बार पोषक तत्वों जैसे विटामिन ए और विटामिन डी की कमी के कारण क्रॉनिक लिवर डिजीज हो सकती है। इसके अलावा गलत खानपान जैसे कि सोडा , डिब्बाबंद भोजन, नमक, और वसा का सेवन भी लिवर रोग का कारण बन सकता है।
  3. मोटापा: अधिक मोटापा के कारण लिवर में चर्बी का जमाव होने लगता है जिसकी वजह से नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग होने की संभावना बढ़ सकती है।
  4. अन्य कारण: शरीर पर टैटू बनवाने, असुरक्षित यौन संबंध, दूसरे लोगों के रक्त या फिर शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आने से भी लिवर में संक्रमण हो सकता है  

बीमारी के कारण

कुछ बीमारियों के कारण लिवर रोग का जोखिम बढ़ जाता है। निम्न बीमारियों के कारण लिवर रोग होने की संभावना बढ़ जाती है:  

  1. पित्त नली का कैंसर: जब पित्त नलिका में कैंसर हो जाता है तो यह लिवर में भी फैलने लगता है जिससे लिवर को कार्य करने में बाधा आती है। 
  2. लिवर कैंसर: जब कैंसर कोशिकाएं लिवर में फैलने लगती हैं और बड़ी होने लगती हैं तो यह लिवर के कार्य को बुरी तरह प्रभावित करती हैं जिससे लिवर डैमेज होने लगता है।   
  3. डायबिटीज: टाइप २ डायबिटीज के कारण रक्त शर्करा ( ब्लड शुगर )बढ़ जाती है जिससे लिवर को अधिक शुगर संरक्षित करके रखने में परेशानी होती है। इससे लिवर में डैमेज होने लगता है।

आनुवांशिक कारण

लिवर में होने वाली बीमारियां जन्मजात भी हो सकती हैं। अगर परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी लिवर की समस्या रही है तो यह अगली पीढ़ी में भी देखी जा सकती है। कुछ निम्नलिखित अनुवांशिक बीमारियां लिवर डैमेज का कारण बनती हैं: 

  1.  हेमोक्रोमेटोसिस: जब व्यक्ति के लिवर और अन्य अंगों में आयरन इकट्ठा हो जाता है तो इससे लिवर को क्षति पहुंचती है और वह अपना कार्य ठीक से नही कर पाता है।  
  2. विल्सन रोग: विल्सन रोग में हृदय, मस्तिष्क और लिवर में अधिक मात्रा में कॉपर इकट्ठा होने लगता है जिसकी वजह से लिवर में समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  3. अल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन की कमी: जब शरीर में एंटीट्रिप्सिन एएटी नाम का प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में नहीं बन पाता है तो लिवर रोग होता है। 

इंफेक्शन होने के कारण

कई बार लिवर में इन्फेक्शन होने की वजह से भी लिवर रोग हो सकता है। कुछ परजीवी (पैरासाइट्स) लिवर को संक्रमित कर सकते हैं जिसकी वजह से लिवर में सूजन हो सकता है। लिवर  में होने वाले संक्रमण इस प्रकार हैं:

  1. हेपेटाइटिस ए: यह संक्रमण दूषित पानी या फिर भोजन से हो सकता है। उपयुक्त उपचार मिलने पर यह कुछ सप्ताह में या फिर महीनों में ठीक हो सकता है।
  2. हेपेटाइटिस बी: हेपेटाइटिस बी संक्रमण एक्यूट या फिर क्रॉनिक दोनों तरह का हो सकता है। यह मुख्य रूप से रक्त और वीर्य के माध्यम से फैलता है‌। इसके अलावा हेपेटाइटिस बी असुरक्षित यौन संबंध बनाने के कारण भी फैल सकता है। 
  3. हेपेटाइटिस सी: संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से हेपेटाइटिस सी संक्रमण हो सकता है। ऐसे में उपयुक्त उपचार न मिलने पर लिवर डैमेज होने लगता है। 

ऑटोइम्यून की बीमारी

जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली लिवर के ऊतकों को नष्ट करने लगती है तो लिवर को कार्य करने में परेशानी होती है और कई गंभीर लक्षण देखने को मिल सकते हैं। कुछ मुख्य ऑटोइम्यून लिवर की बीमारियां इस प्रकार हैं:

  1. ऑटोइम्यून हेपिटाइटिस: लिवर को प्रभावित करने वाला यह एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली लिवर पर हमला कर देती है जिसके कारण लिवर के ऊतक नष्ट होने लगते हैं।
  2. प्राइमरी बिलियरी कोलेंजाइटिस: यह ऑटोइम्यून क्रॉनिक लिवर रोग है जिसमे पित्त की नलिका डैमेज हो जाती है और अंततः लिवर सिरोसिस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।   
  3. प्राइमरी स्केलेरोसिंग कोलेंजाइटिस: इस क्रॉनिक बीमारी में लिवर के अंदर और बाहर की पित्त वाहिकाएं सूज जाती हैं और धीरे - धीरे ब्लॉक हो जाती हैं। इससे लिवर में बनने वाला पित्त लिवर को डैमेज करता है।

लिवर रोग का इलाज

लिवर रोग का इलाज इस बात के ऊपर निर्भर करता है कि रोगी को लीवर की कौन सी बीमारी है क्योंकि हर पीड़ित व्यक्ति की समस्या अलग अलग हो सकती है। लिवर रोग का इलाज करने के लिए कई प्रकार के उपाय अपनाए जा सकते हैं जैसे कि:

जीवन शैली में बदलाव

लिवर रोग होने के पीछे गलत जीवनशैली भी काफी हद तक जिम्मेदार होती है लेकिन अगर इसमें बदलाव किया जाए तो लिवर की बीमारी से बचा जा सकता है- 

  1. खानपान: स्वस्थ खान - पान रखने से लिवर को अधिक कार्य नहीं करना पड़ता है जिससे लिवर भी स्वस्थ रहता है। खानपान में फाइबर युक्त चीजें, ताजे फल विशेषकर खट्टे फल और हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करने से लिवर को लाभ मिलता है। 
  2. वजन नियंत्रण: वजन को नियंत्रित रखने से लिवर में फैट नही जमने पाता है जिससे फैटी लिवर जैसा रोग नही होता है।  
  3. शराब और अल्कोहलिक पदार्थ का निषेध: शराब में विषाक्त पदार्थ होते हैं जो शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। इन विषाक्त पदार्थों को निकालने में लिवर को अधिक कार्य करना पड़ता है। इसलिए लिवर रोग से बचने के लिए शराब या नशीले पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए।
  4. व्यायाम: नियमित रूप से एरोबिक एक्सरसाइज और योगासन करने से लिवर सहित शरीर के सभी अंगों में रक्त का बहाव अच्छा रहता है। इसलिए दैनिक रूप से व्यायाम करना चाहिए। 

घरेलू उपाय

लिवर रोग में कई प्रकार के प्राकृतिक उपाय अपनाए जा सकते हैं जिनसे लिवर रोग को कम किया जा सकता है। कुछ निम्नलिखित घरेलू उपाय इस प्रकार हैं:

  1. हल्दी: हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट तत्व होते हैं। कम वसा वाले दूध में हल्दी मिलाकर पीने से लिवर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। 
  2. पपीते के बीज: पपीते के बीजों के इस्तेमाल से लिवर में चर्बी का जमाव कम होता है जो फैटी लिवर के रोगियों के लिए अच्छा उपाय है। 
  3. खट्टे फल: खट्टे फलों में विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो लिवर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में (डिटॉक्सिफाई) मदद करते हैं। 
  4. कॉफी का सेवन: कॉफी पीने से लिवर रोगों का विकास धीमा हो जाता है और लिवर डैमेज कम होता है।  
  5. ग्रीन टी: ग्रीन टी सिर्फ लिवर के लिए ही नही बल्कि पूरे शरीर के लिहाज से फायदेमंद है। इसमें कैटेचिन मिश्रण होता है जो लिवर में फैट के जमाव को रोकता है और कोलेस्ट्राल के स्तर को भी कम करता है।  

नॉन सर्जिकल उपचार

लिवर रोग जब थोड़े गंभीर हो जाते हैं तो घरेलू उपायों से आराम नही मिल पाता है। ऐसे में नॉन सर्जिकल उपचार जैसे दवाइयां और इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है जो निम्न हैं: 

  1. दवाईयां: लिवर रोग की गंभीरता के आधार डॉक्टर कुछ दवाईयां जैसे लैक्टुलोज, रिफाक्सिमिन, स्पाईरोनोलैक्टोन, फ्युरोसेमाइड और ट्राईमोक्साजोल लेने की सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा ओवर द काउंटर मिलने वाले मल्टीविटामिन और मिनरल के सप्लीमेंट लिए जा सकते हैं। 
  2. इंजेक्शन: लिवर रोग खासकर ऑटोइम्यून हैपेटाइटिस में कोर्टिकोस्टेरॉइड को इंजेक्शन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस इंजेक्शन को लिवर ट्रांसप्लांट के बाद भी दिया जाता है। 

सर्जिकल उपचार

जब लिवर रोग घरेलू उपायों, दवाइयों और नॉन सर्जिकल तरीकों से ठीक नही हो पाता है तो डॉक्टर सर्जिकल प्रक्रिया से लिवर रोग को ठीक करने की कोशिश करते हैं। आमतौर पर लिवर रोग में निम्नलिखित सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है:

  1. हेपेटेक्टॉमी: इस सर्जरी में लिवर के किसी एक हिस्से में हुए कैंसरस ट्यूमर को निकाल दिया जाता है। बाकी बचा हुआ लिवर पूरे लिवर का कार्य करता है। हेपेटेक्टॉमी के कुछ हफ्तों बाद लिवर वापस अपने सामान्य आकार में आ सकता है।  
  2. लिवर ट्रांस्प्लांट: जब लिवर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाता है यानी कि लिवर फेल हो जाता है तो ऐसे में ट्रांसप्लांट सर्जन द्वारा लिवर ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। लिवर ट्रांसप्लांट के माध्यम से खराब लिवर को निकालकर उसकी जगह स्वस्थ लिवर प्लांट किया जाता है। 

लिवर रोग में परहेज़

लिवर रोग से बचने के लिए जरूरी है कि कुछ चीजों का परहेज किया जाए ताकि लिवर स्वस्थ बना रहे और सुचारू रूप से काम कर सके। इसलिए निम्नलिखित चीजों का परहेज किया जाना चाहिए: 

  1. शराब और दूसरे नशीले पदार्थ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  2. शुगर वाली चीजें जैसे मिठाइयां, आलू इत्यादि का सेवन अधिक नही करना चाहिए।
  3. नमक का बहुत अधिक सेवन नही करना चाहिए। 
  4. वसायुक्त आहार जैसे रेड मीट, फ्राइड फूड, मलाईदार दूध,आइसक्रीम इत्यादि लेने से बचना चाहिए। 
  5. हमेशा सोने या बैठने से परहेज करना चाहिए और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना चाहिए।

सारांश

इस लेख में हमने समझा कि लिवर हमारे शरीर का अहम हिस्सा है। लिवर में कुछ कारणों जैसे इन्फेक्शन, ऑटोइम्यून डिजीज, बीमारी और गलत जीवनशैली के कारण लिवर रोग हो सकता है। लिवर रोग को ठीक करने के लिए जीवनशैली सुधार, घरेलू उपाय और दवाइयों की मदद ली जाती है। अगर क्रॉनिक लिवर रोग गंभीर हो जाता है तो लिवर ट्रांसप्लांट करना पड़ सकता है। लिवर रोग में वसायुक्त भोजन, शराब और अधिक मीठा खाने से परहेज करना चाहिए।

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अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल

लिवर की बीमारी होने से मरीज को कई प्रकार की परेशानियां हो सकती हैं जैसे कि:

  1. अचानक वजन कम होने से कमजोरी महसूस होना
  2. पेट में दर्द और सूजन होना  
  3. जी मिचलाना और उल्टी होना 
  4. चोट लगने पर पहले की तुलना में खून अधिक समय तक बहना   
  5. हमेशा थकान महसूस होना   

लिवर ठीक होने में जो समय लगता है वह इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी की स्थिति क्या है। अगर शराब का अत्यधिक सेवन करने से फैटी लीवर की समस्या उत्पन्न हो गई है तो शराब पूरी तरह बंद कर देने से लिवर ४ से ६ महीनों में ठीक हो सकता है। हालांकि अगर लिवर में लम्बे समय से गंभीर बीमारी है तो ऐसे में लिवर ट्रांसप्लांट करने की आवश्यकता पड़ सकती है। 

लिवर खराब होने के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

  1. आंखों का रंग और त्वचा का रंग पीला हो जाना 
  2. पेशाब के रंग में बदलाव होना
  3. मल का रंग पीला या फिर काला होना
  4. पेट में सूजन होना
  5. जी मिचलाना
  6. उल्टी होना
  7. भूख बिल्कुल ना लगना
  8. लगातार शरीर में थकान बने रहना 
  9. अचानक वजन कम होना 

लिवर की बीमारी ठीक करने के लिए हेपेटोलॉजिस्ट ( लिवर विशेषज्ञ ) सबसे पहले निदान करते हैं जिसमे लैब टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट और लिवर बायोप्सी शामिल है। निदान के बाद रोग और रोग का कारण पता लगता है जिसके अनुसार डॉक्टर उचित दवाइयों और घरेलू उपायों से उपचार करने का प्रयास करते हैं। लिवर को स्वस्थ रखने में स्वस्थ आहार और अच्छी जीवनशैली का होना आवश्यक होता है।

लिवर को स्वस्थ रखने के लिए अपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल करें जो पौष्टिक तत्वों से भरपूर हों जैसे कि खट्टे फल, साबुत अनाज, दालें, एवोकाडो, मछली, हरी पत्तेदार सब्जियां। इसके साथ साथ हर दिन व्यायाम और योगासन करने से लिवर में चर्बी नही बढ़ती है। 

लिवर के ठीक से काम ना करने के कई संकेत होते हैं जैसे

  1. भूख ना लगना
  2. पीलिया होना 
  3. लगातार वज़न का कम होना 
  4. पेट में दर्द के साथ-साथ सूजन होना 
  5. पेशाब का रंग गहरा पीला होना 
  6. चोट लगने पर घाव जल्दी ना भरना 

अधिक वसा वाले भोजन जैसे रेड मीट, फ्राइड फूड इत्यादि का सेवन करने से लिवर खराब होने लगता है। इसके अलावा शराब पीने, चीनी का अधिक उपयोग करने से लिवर अपना कार्य सुचारू रूप से नही कर पाता है। 

अगर क्रॉनिक लिवर डिजीज अधिक गंभीर नहीं हुआ है तो निदान के अनुसार उपयुक्त उपचार चलाया जाता है। जैसे अगर हेपेटाइटिस संक्रमण के कारण क्रॉनिक लिवर डिजीज हुआ है तो एंटी वायरल दवाएं दी जाती हैं। इसी प्रकार अलग - अलग कारणों से होने वाले क्रॉनिक लिवर रोग में उपयुक्त दवाईयां चलाई जाती हैं। कुछ मामलों जैसे अल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन की कमी होने पर लिवर ट्रांसप्लांट करना पड़ता है।    

लिवर सिरोसिस क्रॉनिक लिवर डिजीज का अंतिम स्टेज होता है। लिवर सिरोसिस को बढ़ने से रोका जा सकता है लेकिन ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए लिवर सिरोसिस में डॉक्टर लिवर ट्रांस्प्लांट कराने की सलाह देते हैं।

क्रॉनिक लिवर डिजीज वह होता है जिसमे लगातार ६ महीनों तक लिवर के कार्य करने की क्षमता खराब होती जाती है। क्रॉनिक लिवर डिजीज में पित्त के निर्माण में कमी, खून के थक्के और अन्य प्रोटीन के नियंत्रण में कमी और चयापचय की प्रक्रिया ठीक से नही हो पाती है। क्रॉनिक लिवर डिजीज में नॉन - अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज, अल्कोहलिक लिवर डिजीज, क्रॉनिक वायरल हेपेटाइटिस जैसे हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी शामिल हैं। 

लिवर में इन्फेक्शन होने के कई लक्षण होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं:

  1. पीलिया और बुखार
  2. लंबे समय तक पेट में दर्द रहना
  3. खाने पीने की इच्छा ना होना
  4. थकान महसूस होना
  5. त्वचा में खुजली के साथ-साथ रेशैज पड़ना 

जब लीवर खराब हो जाता है तो शरीर कई संकेत देता है जो निम्नलिखित हैं:

  1. आंखों का रंग पीला पड़ जाता है
  2. भूख कम लगती है
  3. शरीर में हर वक्त कमजोरी महसूस होती है
  4. मल का रंग बदल जाता है
  5. जी मचलाता है और उल्टी भी हो सकती है 

Last Updated on: 5 September 2024

Disclaimer: यहाँ दी गई जानकारी केवल शैक्षणिक और सीखने के उद्देश्य से है। यह हर चिकित्सा स्थिति को कवर नहीं करती है और आपकी व्यक्तिगत स्थिति का विकल्प नहीं हो सकती है। यह जानकारी चिकित्सा सलाह नहीं है, किसी भी स्थिति का निदान करने के लिए नहीं है, और इसे किसी प्रमाणित चिकित्सा या स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से बात करने का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

समीक्षक

Dr. Monika Dubey

Dr. Monika Dubey

MBBS, MS Obstetrics & Gynaecology

21 Years Experience

A specialist in Obstetrics and Gynaecology with a rich experience of over 21 years is currently working in HealthFort Clinic. She has expertise in Hymenoplasty, Vaginoplasty, Vaginal Tightening, Labiaplasty, MTP (Medical Termination...View More

लेखक

Charu Shrivastava

Charu Shrivastava

BSc. Biotechnology I MDU and MSc in Medical Biochemistry (HIMSR, Jamia Hamdard)

2 Years Experience

Skilled in SEO and passionate about creating informative and engaging medical content. Her proofreading and content writing for medical websites is impressive. She creates informative and engaging content that educ...View More

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