हम सबको रोजमर्रा के जीवन में कभी न कभी संक्रमण का सामना करना ही पड़ता है। संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर में सफेद रक्त कोशिकाएं होती है। ऐसी ही कुछ कोशिकाओं को ईसिनोफिल्स के नाम से जाना जाता है।
जब शरीर में इन कोशिकाओं की स्तर बढ़ने लगता है तो इओसिनोफिलिया की बीमारी जन्म ले लेती है। इओसिनोफिलिया के लक्षण, कारण, उपचार के साथ ही, इनका सामान्य स्तर आदि के बारे में जानिए यहां।
सफेद रक्त कोशिकाएं विभिन्न प्रकार के संक्रमण से लड़ने में शरीर की मदद करती हैं। इओसिनोफिल्स एक प्रकार के सफ़ेद कोशिकाएं हैं। शरीर में जब यह बढ़ने लगती हैं, उसे ‘इओसिनोफिलिया’ के नाम से जाना जाता है। यह अपने आप मैं एक बीमारी नहीं है। शरीर मैं कुछ ऐसी बीमारियां हो सकती हैं जो इओसिनोफिल्स की मात्रा बढ़ा देती हैं।
आइये देखें किन बिमारियों के कारन इओसिनोफिलिया हो सकता है:
शरीर में एलर्जी, संक्रमण या अन्य बीमारियां जैसे कि निमोनिया, कैंसर, पेट संबंधी रोग आदि के कारन इओसिनोफिलिया हो सकता है।
अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से संक्रमण या किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित है तो शरीर में ईसिनोफिल्स कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।
अस्थिमज्जा रोग या फिर संक्रमण का सही समय पर इलाज न हो तो इओसिनोफिलिया की गंभीरता बढ़ जाती है।
इओसिनोफिलिया के कारण शरीर के विभिन्न अंग प्रभावित हो सकते हैं। इस वजह से शरीर में सूजन भी आ सकती है। शरीर के विभिन्न अंगों में प्रभाव पड़ता है और इन्हें निम्नप्रकार से समझा जा सकता है:
ईसिनोफिलिक फेसिआइटिस: ईसिनोफिल्स के इस विकार के कारण प्रावरणी संयोजी ऊतक प्रभावित होते हैं और समस्या पैदा करते हैं। प्रावरणी संयोजी ऊतक त्वचा की संवेदनशीलता बनाए रखते हैं।
ईसिनोफिलिक निमोनिया: इसके कारण फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कारण से व्यक्ति को गंभीर शारीरिक लक्षण दिख सकते हैं।
ईसिनोफिलिक सिस्टिटिस: यह एक मूत्राशय से संबंधित विकार है। इसके कारण मूत्र करने में जलन और दर्द हो सकता है।
ईसिनोफिलिक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार: ईसिनोफिल्स के इस विकार के कारण अन्नप्रणाली प्रभावित होती है। साथ ही बड़ी आंत, छोटी आंत में बुरा असर पड़ता है।
हाइपेरोसिनोफिलिक सिंड्रोम: जब लगातार इओसिनोफिलिया उच्च स्तर में होती है, तो दिल, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, त्वचा और श्वसन पथ बुरी तरह से प्रभावित होते हैं।
ईसिनोफिलिक ग्रैनुलोमैटोसिस: ईसिनोफिल्स संबंधित ये विकार फेफड़ों, हृदय, साइनस और शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
शरीर में संक्रमण या फिर किसी बीमारी के कारण इओसिनोफिलिया हल्का या फिर अधिक गंभीर हो सकता है। इसको विभिन्न चरणों में बांटा जा सकता है:
हल्का इओसिनोफिलिया: यदि गणना में ईसिनोफिल्स की संख्या बहुत अधिक न होकर हल्की अधिक होती है तो इसे हल्का इओसिनोफिलिया कहा जाएगा। इसका मान ५०० से १५००/मिमी^३ के बीच होता है।
मध्यम इओसिनोफिलिया: जब ईसिनोफिल्स के मान हल्के से अधिक हो तो इसे मध्यम इओसिनोफिलिया कहा जाएगा। मध्यम इओसिनोफिलिया में मान १५०० से ५०००/मिमी^३ के बीच होता है।
गंभीर इओसिनोफिलिया: ये एक गंभीर चरण है। जब ईसिनोफिल्स की संख्या बहुत अधिक हो जाती है, तो इसे गंभीर इओसिनोफिलिया कहा जाता है। इस चरण में व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के लक्षण जैसे कि शरीर में सूजन, बुखार आदि दिखने लगते हैं। इस दौरान मान से अधिक ५०००/मिमी^३ होता है।
इओसिनोफिलिया होने पर हमेशा लक्षण दिखें, ये जरूरी नहीं है। इस बीमारी के कारण शरीर के विभिन्न हिस्से प्रभावित होते हैं। उच्च ईसिनोफिल्स स्तर आमतौर पर अंतर्निहित स्थितियों के कारण होते हैं, जो कई अलग-अलग लक्षणों का कारण बनते हैं:
सांस लेने में समस्या यासांस फूलना
त्वचा मेंचकत्ते दिखना
दस्त और बुखार आना
शरीर में सूजन
पेट में दर्द
इओसिनोफिलिया की बीमारी के लिए एक नहीं बल्कि कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। निम्नलिखित स्थितियां या बीमारियां इओसिनोफिलिया के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं:
एलर्जी : जब शरीर में किसी एलर्जन (एलर्जी पैदा करने वाला) की वजह से एलर्जी होती है तो ईसिनोफिल्स की संख्या बढ़ जाती है।[२]
जठरांत्रिय विकार के कारण : पेट संबंधित विकार जैसे कि गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग, पेप्टिक अल्सर आदि के कारण भी ईसिनोफिल्स की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है।
ल्यूकेमिया की बीमारी : ये एक प्रकार का कैंसर है जो अस्थिमज्जा को प्रभावित करता है। इसके कारण भी ईसिनोफिल्स की संख्या प्रभावित होती है।
शराब का अधिक नशा : अधिक मात्रा में शराब पीने से भीईसिनोफिल्स बढ़ सकती है।[२]
परजीवी संक्रमण: शरीर में जब कोई परजीवी का संक्रमण हो जाता है तोईसिनोफिल्स की संख्या में भी परिवर्तन होता है।
कोर्टिसोल का ज्यादा उत्पादन की वजह से: कोर्टिसोल का ज्यादा उत्पादन कई समस्याएं (उच्च रक्तचाप, कमजोर मांसपेशियां) पैदा करता है। ये ईसिनोफिल्स की संख्या भी बढ़ा सकता है।
इओसिनोफिलिया को एलर्जी से जुड़ी बीमारी माना जाता है। इस बीमारी से एक या दो नहीं बल्कि कई जोखिम कारक जुड़े हो सकते हैं। निम्न बीमारियां इसके जोखिम को बढ़ा सकती हैं:
अस्थमा की बीमारी: लंबे समय तक अस्थमा की बीमारी इओसिनोफिलिया से जुड़े जोखिम कारक में शामिल है। ईसिनोफिल्स अस्थमा के पैथोफिजियोलॉजी और रोगजनन में योगदान करते हैं।[५]
एलर्जी की समस्या: किसी व्यक्ति को अगर ज्यादातर एलर्जी की समस्या रहती है तो शरीर में ईसिनोफिल्स की संख्या बढ़ने का खतरा अधिक रहता है।
फेफड़े संबंधी रोग: प्रतिरोधी फेफड़ों के रोग के कारण फेफड़ों में ईसिनोफिल्स की संख्या बढ़ने का जोखिम होता है।
परिजीवी या कवक संक्रमण: शरीर में संक्रमण कई कारण से हो सकता है। इस कारण से शरीर में ईसिनोफिल्स की संख्या बढ़ जाती है।
इओसिनोफिलिया विभिन्न कारकों से प्रभावित हो सकता है, लेकिन कुछ कदम इसके होने के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं। विचार करने योग्य कुछ सरल रोकथाम युक्तियाँ यहां दी गई हैं:
अच्छी स्वच्छता बनाए रखें - अच्छी स्वच्छता का अभ्यास करना, जैसे नियमित रूप से हाथ धोना, उन संक्रमणों को रोकने में मदद कर सकता है जो ईोसिनोफिलिया को ट्रिगर कर सकते हैं।
एलर्जेन प्रबंधन - उन एलर्जेन की पहचान करें और उनका प्रबंधन करें जो एलर्जी प्रतिक्रियाओं का कारण बन सकते हैं, क्योंकि एलर्जी इओसिनोफिलिया का एक सामान्य कारण है।
स्वस्थ आहार - फलों, सब्जियों और साबुत अनाज से भरपूर संतुलित आहार खाने से आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिल सकता है और संक्रमण की संभावना कम हो सकती है।
सक्रिय रहें - नियमित शारीरिक गतिविधि समग्र स्वास्थ्य का समर्थन करती है और मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली में योगदान कर सकती है।
पर्यावरणीय ट्रिगर से बचें - प्रदूषक या विषाक्त पदार्थों जैसे पर्यावरणीय परेशानियों के संपर्क में आना कम करें, जो ईोसिनोफिलिया में योगदान कर सकते हैं।
पुरानी स्थितियों को उचित रूप से प्रबंधित करें - यदि आपको अस्थमा या एलर्जी जैसी स्थितियां हैं, तो उन्हें प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के साथ मिलकर काम करें।
टीकाकरण के साथ अद्यतित रहें - यह सुनिश्चित करना कि आप टीकाकरण के साथ अद्यतित हैं, कुछ संक्रमणों को रोकने में मदद मिल सकती है जो ईोसिनोफिलिया को ट्रिगर कर सकते हैं।
एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग से बचें - एंटीबायोटिक दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमण को रोकने में मदद कर सकता है, जो ईोसिनोफिलिया में योगदान कर सकता है।
इओसिनोफिलिया की बीमारी का निदान कई बार डॉक्टर अन्य बीमारी के टेस्ट के दौरान कर सकते हैं। शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियों जैसे कि एलर्जी, बुखार आदि के दौरान कुछ टेस्ट कराएं जाते हैं। ऐसे में इओसिनोफिलिया बीमारी का निदान भी हो सकता है:
शरीरिक परिक्षण - डॉक्टर सबसे पहले व्यक्ति का शरीरिक परिक्षण करते हैं। परिक्षण के दौरान शरीर में आई सूजन और चकत्तों की जांच की जाती है।
सीबीसी टेस्ट - आमतौर पर इओसिनोफिलिया की बीमारी का निदान पूर्ण रक्त गणना (सीबीसी) के माध्यम से होता है। बल्ड टेस्ट में, ईसिनोफिल्स क्या है, ये जानकारी परिणाम में मिल जाती है। पूर्ण रक्त गणना के माध्यम से श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या के बारे में पता चलता है।
एब्सोल्यूट ईसिनोफिल काउंट - इस टेस्ट की मदद से ईसिनोफिल्स की संख्या पता की जाती है। रक्त के नमूने में एक डाई मिलाई जाती है। फिर जांच की जाती है कि १00 कोशिकाओं में से नमूने में कितने ईसिनोफिल्स मौजूद हैं।
स्वास्थ्य स्थिति ठीक न होने पर डॉक्टर ब्लड टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।ईसिनोफिल्स की संख्या ब्लड टेस्ट के माध्यम से पता चल जाती है और फिर बीमारी का निदान किया जाता है।
शरीर में जब कोई समस्या होती है तो उसके संबंध में जानकारी होना बहुत जरूरी है। डॉक्टर से बीमारी के संबंध में निम्न सवाल पूछे जा सकते हैं:
डॉक्टर से पूछें कि किस कारण से शरीर में ईसिनोफिल्स का मान बढ़ा हुआ है?
साथ ही ये भी पूछें कि बीमारी ठीक होने पर क्या इओसिनोफिलिया पूरी तरह से ठीक हो जाएगा?
डॉक्टर से पूछें कि बीमारी का जोखिम क्या है?
पूरी तरह से ठीक होने में कितना समय लगेगा?
इलाज के लिए क्या विकल्प हैं?
इओसिनोफिलिया का उपचार सभी व्यक्तियों में एक जैसा नहीं हो सकता है। जैसा कि पहले बताया गया कि रक्त परिक्षण में ईसिनोफिल्स की अधिक मात्रा के एक नहीं बल्कि कई कारण हो सकते हैं।
जिस बीमारी के कारण शरीर में ईसिनोफिल्स की अधिक संख्या हुई है, उस बीमारी का इलाज किया जाता है:
डॉक्टर इओसिनोफिलिया का उपचार करने के लिए अंतर्निहित स्थिति या समस्या का इलाज करते हैं।
एलर्जी या क्रोनिक साइनसिस होने पर पहले डॉक्टर एलर्जी का कारण पता करते हैं और फिर इओसिनोफिलिया को ट्रिगर करने वाली एलर्जी की प्रतिक्रिया जानते हैं।
अगर किसी दवा के कारण ईसिनोफिल्स की संख्या बढ़ रही है तो डॉक्टर उस दवा को बंद कर देते हैं।
व्यक्ति को रक्त कैंसर या फिर संक्रमण होने पर डॉक्टर इनका इलाज करते हैं।
इओसिनोफिलिया मौसम बदलने पर भी हो सकती है। घरेलू उपाय की मदद से बीमारी के लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। कुछ आसान घरेलु उपाय इस प्रकार हैं:
अदरक का काढ़ा: यदि एलर्जी की समस्या के कारण खांसी आ रही हैं तो ऐसे में अदरक का काढ़ा पिया जा सकता है।
अदरक की चाय: यदि अदरक की चाय का सेवन किया जाए तो भी ये खांसी जैसी समस्या में राहत पहुंचा सकती है।
इओसिनोफिलिया के लिए दवाएं पूर्ण रूप से बीमारी पर निर्भर करती हैं। डॉक्टर जांच के बाद तय करते हैं कि व्यक्ति को कौन-सी दवाएं दी जाएं। निम्नलिखित दवाओं का इस्तेमाल इओसिनोफिलिया में किया जाता है:
कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स: ये दवाएं शरीर में आई सूजन और जलन को रोकने का काम करती हैं। जिन लोगों को बढ़ी हुई ईसिनोफिल्स के कारण सूजन का सामना करना पड़ता है, उन्हें कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दी जा सकती हैं।
कृमिनाशक दवाएं: शरीर में कृमि के कारण संक्रमण को खत्म करने के लिए कृमिनाशक दवाएं दी जाती हैं। ये शरीर से संक्रमण खत्म करती है और बढ़े हुई ईसिनोफिल्स की संख्या भी सामान्य करती हैं।
एंटीबैक्टीरियल दवाएं: यदि व्यक्ति को बैक्टीरिया का संक्रमण हुआ है तो डॉक्टर एंटीबैक्टीरियल दवाएं देते हैं।
दवाओं और घरेलू उपचार के साथ ही इओसिनोफिलिया का उपचार आयुर्वेद में भी संभव है। विशेषज्ञ द्वारा बताए गए समय तक औषधियों का सेवन फायदा पहुंचाता है। आयुर्वेदिक उपचार के दौरान निम्न औषधियों का इस्तेमाल किया जा सकता है:
ग्लाइसीराइजा ग्लबरा: यष्टी मधु या ग्लाइसीराइजा ग्लबरा एक प्रकार का औषधी है जिसके चूर्ण का इस्तेमाल कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
कई अध्ययनों के माध्यम से इस बात की जानकारी मिलती है कि इओसिनोफिलिया के इलाज में ये अहम योगदान देता है। इसके चूर्ण का इस्तेमाल इओसिनोफिलिया में फायदा पहुंचाता है।क्लेरोडेंड्रम सेराटम: ये एक औषधीय पौधा है जो सांस संबधी समस्याओं को दूर करता है। इस औषधी का इस्तेमाल करने से अस्थमा के साथ ही एलर्जी के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।
इस बीमारी का इलाज आमतौर पर बिना सर्जरी के किया जाता है। इओसिनोफिलिया के लिए सर्जिकल उपचार का उपयोग शायद ही कभी किया जाता है। आमतौर पर केवल विशिष्ट मामलों में ही इस पर विचार किया जाता है जहां अन्य उपचार अप्रभावी होते हैं या जटिलताएं उत्पन्न होती हैं।
उपचार का दृष्टिकोण और प्रक्रिया का चयन रोगी की स्वास्थ्य स्थिति पर और इलाज करने वाले डॉक्टर की राय पर निर्भर करता है।
थ्रोम्बोम्बोलिक घटनाएं ईसिनोफिलिक विकारों की प्रमुख जटिलताएं मानी जाती हैं जिनमें प्रभावित क्षेत्र के आधार पर नैदानिक अभिव्यक्तियाँ होती हैं। संभावित स्नायविक जटिलताओं में शामिल है:
इस्केमिक अटैक: यह एक प्रकार का स्ट्रोक होता है जो कुछ मिनट तक रहता है। ऐसा मस्तिष्क के हिस्से में कुछ समय के लिए रक्त आपूर्ति बाधित होने के कारण होता है।
परिधीय न्यूरोपैथी: जब रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क की बाहरी नसे खराब या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो इस कारण से कमजोरी, दर्द और हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं।
एन्सेफैलोपैथी: इस बीमारी में दिमाग में ऑक्सीजन ठीक प्रकार से नहीं पहुंच पाती है। शरीर के विभिन्न अंगों के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है।
श्वसन रोग: सांस संबधी बीमारियां (४०% मामलों में) जैसे कि अस्थमा, फुफ्फुसीय रोग आदि का खतरा बढ़ सकता है।
यदि कई दिनों से किसी बीमारी के लक्षण नजर आ रहे हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए:
अगर शरीर के विभिन्न भागों में सूजन दिख रही हो तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।
सांस फूलने या फिर सांस लेने में अगर समस्या महसूस हो तो बिना देरी के नजदीकी अस्पताल में जाना चाहिए।
अन्य लक्षण जैसे के कि पेट में दर्द और शरीर में चकत्ते दिखने पर भी डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
इओसिनोफिलिया के हल्के और पूरी तरह से सुरक्षित से लेकर अधिक गंभीर, कई कारण हो सकते हैं। डॉक्टर शारीरिक जांच और कुछ परिक्षण के बाद ईसिनोफिल्स की बढ़ी संख्या का पता लगाएंगे और इलाज संबंधी जानकारी देंगे।
एलर्जी होने पर इओसिनोफिलिया की समस्या होना आम बात है। अगर किसी व्यक्ति को अक्सर एलर्जी की समस्या होती है तो उसे खानपान पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। ईसिनोफिल्स की संख्या बढ़ने पर खानपान संबंधी निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए:
क्या न खाएं
खाने में छह चीजों से परहेज करना इओसिनोफिलिया के मरीज के लिए लाभदायक साबित हो सकता है:
दूध या उससे बना आहार
सोया से बने विभिन्न उत्पाद
गेहूं
अंडे
मछली (शेलफिश)
मूंगफली
क्या खाएं?
ईसिनोफिल्स की संख्या बढ़ने पर मरीज को खाने में ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए, जिनसे एलर्जी की समस्या न हो। खाने में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ या अमीनो एसिड युक्त फॉर्मुला का सेवन फायदा पहुंचाता है।निम्नलिखित आहार को खाने में शामिल किया जा सकता है:
ओट्स
चावल
नारियल
सूखी अंजीर
हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक
ब्रोकली
विभिन्न प्रकार की दाल
बींस
ईसिनोफिल्स का मान यदि शरीर में अधिक है तो ये अंतर्निहित स्थिति की ओर इशारा करता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जल्द से जल्द बीमारी का इलाज कराया जाए। ईसिनोफिल्स के स्तर के बारे में परिक्षण के बाद ही जानकारी मिलती है इसलिए शरीर में यदि कोई लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
बीमारी का इलाज होने पर ईसिनोफिल्स के स्तर में भी सुधार हो जाता है। यदि आपने इओसिनोफिलिया की बीमारी के बारे में पहले सुना है लेकिन इसके इलाज संबंधी अहम जानकारी नहीं है तो HexaHealth विशेषज्ञ से संपर्क कर सकते हैं। हम आपकी सभी शंकाओं को तुरंत दूर करेंगे और साथ ही बीमारी से जुड़े बेहतर विकल्प के बारे में भी बताएंगे।
ईसिनोफिल्स श्वेत या सफेद रक्त कोशिकाओं होती है। ये कोशिकाएं शरीर को संक्रमण से बचाने में मदद करती हैं। इन कोशिकाओं का निर्माण अस्थिमज्जा में होता है। शरीर में इनकी सामान्य संख्या या मान स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
जब शरीर में किसी बीमारी के कारण ईसिनोफिल्स कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है तो इओसिनोफिलिया की समस्या हो जाती है। इओसिनोफिलिया की बीमारी किसी अन्य या अन्तर्निहित बीमारी का संकेत हो सकता है।
इओसिनोफिलिया का सामान्य स्तर तब अधिक माना जाता है जब वो रक्त में ५०० ईसिनोफिल्स प्रति माइक्रोलीटर से अधिक या बराबर हो। शरीर में जब कोई बीमारी जैसे कि एलर्जी, अस्थमा, रक्त कैंसर आदि हो जाता है तो ईसिनोफिल्स कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।
ईसिनोफिल्स बढ़ने पर लक्षण शरीर में पहले से उपस्थित बीमारी पर निर्भर करते हैं। यदि व्यक्ति को एलर्जी की समस्या है तो त्वचा में लालिमा, चकत्ते पड़ना, खांसी आदि लक्षण दिख सकते हैं।
पैरासाइट या परिजीवी के संक्रमण से होने वाली इओसिनोफिलिया के कारण बुखार, दस्त, कमजोरी आदि लक्षण दिख सकते हैं।
ईसिनोफिल्स बढ़ने के एक नहीं बल्कि कई बीमारियां कारण हो सकती हैं। जब व्यक्ति को निम्लिखित बीमारियां होती हैं तो शरीर में की संख्या बढ़ जाती है:
एलर्जी
जठरांत्रिय विकार के कारण
ल्यूकेमिया की बीमारी
शराब का अधिक नशा
परजीवी संक्रमण
कोर्टिसोल का ज्यादा उत्पादन की वजह से
इओसिनोफिलिया के बारे में जानकारी सामान्य रक्त परिक्षण के दौरान मिलती है। यदि किसी बीमारी के लक्षण महसूस हो तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए। डॉक्टर शारीरिक परिक्षण के बाद टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। इस तरह से इओसिनोफिलिया के बारे में जानकारी मिलती है।
ईसिनोफिल्स बढ़ने पर सभी कारणों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है:
परिजीवी या बैक्टीरिया के संक्रमण से निपटने के लिए साफ-सफाई और अच्छी आदतों को अपनाया जा सकता है।
एलर्जी से बचने के लिए उन चीजों से दूर रहा जा सकता है, जो एलर्जी के लक्षणों को बढ़ाती हैं।
इस प्रकार से इओसिनोफिलिया के कारणों को नियंत्रित कर सकते हैं।
ईसिनोफिल्स बढ़ने पर उपचार अंतर्निहित स्थिति करता है। यदि व्यक्ति को एलर्जी की समस्या के कारण इओसिनोफिलिया है तो डॉक्टर दवाओं के साथ ही उन चीजों से दूर रहने की सलाह देते हैं, जो एलर्जी का कारण बन रही हैं। अन्य बीमारियों जैसे कि ब्लड कैंसर, त्वचा संबंधी रोग, परिजीवी संक्रमण आदि का इलाज दवाओं के माध्यम से किया जाता है।
इओसिनोफिलिया के उपचार में सूजन और जलन को रोकने के लिए स्टेरॉइड्स दवांओं का इस्तेमाल किया जाता है। हाइड्रोक्सीयूरिया का इस्तेमाल बढे हुए ईसिनोफिल्स को कम करने के लिए किया जाता है। दवाओं का प्रयोग इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति को कौन-सी अंतर्निहित स्थिति या समस्या है।
ईसिनोफिल्स बढ़ने के लक्षणों को पहचान कर और समय पर बीमारी का उपचार कराकर बीमारी को प्रतिबंधित किया जा सकता है। यदि समय पर बीमारी का उपचार न हो पाए तो गंभीर समस्या पैदा हो सकती है।
इओसिनोफिलिया से बचाव के लिए समय-समय पर रक्त परिक्षण कराना चाहिए। शरीर में किसी भी तरह से लक्षण दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। यदि इओसिनोफिलिया का निदान हो चुका है तो समय पर दवाओं का सेवन करना चाहिए।
ईसिनोफिल्स बढ़ने का घरेलू उपचार करने से कुछ समस्याओं जैसे कि खांसी, कफ आदि समस्याओं से राहत मिल जाती है। एलर्जी की समस्या होने पर या संक्रमण होने पर सांस लेने में समस्या, बुखार, खांसी, कफ आदि लक्षण नजर आते हैं:
खांसी आ रही हैं तो ऐसे में अदरक, दालचीनी, इलायची आदि का सेवन किया जा सकता है। ये कफ की समस्या को कम करती हैं।
खाने में शहद का इस्तेमाल कफ की समस्या से राहत दिलाता है।
नीलगिरी का तेल और तिल के तेल का इस्तेमाल नाक में नेति पॉट की मदद से करें। सांस लेने में आसानी होती है।
घरेलू उपचार से पहले एक बार डॉक्टर या विशेषज्ञ से सलाह लेना बेहतर रहता है।
दिनचर्या में अच्छी आदतें बीमारी की संभावना को कम करती है। बीमारी को रोकने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
हमेशा सब्जियां धोकर खानी चाहिए।
खाने से पहले और बाद में हाथ साफ करना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति संक्रमित है तो उससे दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
उपरोक्त बातों का ध्यान रख कर ईसिनोफिल्स बढ़ने की समस्या को कुछ हद तक रोका जा सकता है। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिन्हें रोकना संभव नहीं होता है। डॉक्टर से इस बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
ईसिनोफिलिया की समस्या में उन खाद्य पदार्थों का सेवन बंद कर देना चाहिए जो बीमारी के लक्षणों को बढ़ा रहे हैं। खाने में निम्नलिखित चीजों से परहेज करना किया जाना चाहिए:
गेहूं
दूध से संबंधित आहार
मूंगफली
सोया से बने विभिन्न उत्पाद
अंडे
मछली (शेलफिश)
मिथक: ईसिनोफिल्स का अधिक मान किसी अन्य बीमारी से संबंधित नहीं होता है।
तथ्य: ईसिनोफिल्स का अधिक मान शरीर की किसी अंतर्निहित स्थिति से संबंधित हो सकता है। रक्त परिक्षण के दौरान ईसिनोफिल्स के अधिक मान के बारे में जानकारी मिलती है।
मिथक: इओसिनोफिलिया की बीमारी का फेफड़ों से कोई संबंध नहीं होता है।
तथ्य: ये बात सच नहीं है। ईसिनोफिलिक निमोनिया फेफड़ों से संबंधित बीमारी है। इस विकार के कारण फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
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Last Updated on: 10 July 2024
MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
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Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More
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